प्लेटो के राजनीतिक विचार (Plato Political Thought) राजनीति के क्षेत्र में अमृत हैं। प्लेटो के विचारों को राजनीति के क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान देने का कारण हैं, क्योंकि वह एक महान व्यक्तित्व के व्यक्ति थे, साथ ही राजनीति के जनक कहें जाने वाले अरस्तू के गुरु भी थे। तो हम समझ सकते हैं कि राजनीति के क्षेत्र में उनकी कितनी अहम भूमिका रहीं होगी।
प्लेटो के राजनीतिक विचार विश्वव्यापी है एवं सर्वमान्य हैं। प्लेटो के राजनीतिक विचारों के आलोचक बीबी बहुत कम है क्योंकि उनके प्रत्येक विचारों के आधार पर ही प्रायः राजनीति के अर्थ को परिभाषित किया जाता हैं। तो आइए जानते है कि प्लेटो के राजनीतिक विचार क्या हैं What is Plato Political Thought.
प्लेटो के राजनीतिक विचार (Plato Political Thought)
प्लेटो के राजनीतिक विचारों को निम्न आधारों पर विभक्त किया गया है जो इस प्रकार हैं –

1. राज्य पर प्लेटो के विचार (Plato Thoughts on State) – प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध एवं विख्यात पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में अपने राज्य संबंधी विचारों को परिभाषित किया हैं। प्लेटो अपने राज्य को आदर्श राज्य के रूप में परिभाषित किया हैं अर्थात ऐसा राज्य जहाँ न्याय व्यवस्था हो, और वहाँ के शासक में विवेक, साहस और तृष्णा का भाव विद्यमान हो।
प्लेटो राज्य को एक विशाल संपदा मानते है, उनके अनुसार राज्य व्यक्तियों का व्यापक रूप हैं। उनके अनुसार व्यक्ति और राज्य के मध्य कोई भेद नहीं होता। प्लेटो राज्य को एक मानवीय संस्था मानते हैं। प्लेटो अपने आदर्श राज्य हेतु एक आदर्श राजा की बात करते है। जिसमें विवेक, साहस और तृष्णा तीनों तत्व विद्यमान हो।
प्लेटो के अनुसार राज्य का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नही होता बल्कि उस राज्य के अंदर रहने वाले व्यक्तियों के अस्तित्व के आधार पर ही राज्य के अस्तित्व का निर्माण होता हैं। उनके अनुसार राज्य में रहने वाले व्यक्ति जितने अच्छे गुण के हूंगे राज्य उतना ही आदर्श होगा। प्लेटो (Plato) ने अपने आदर्श राज्यों को तीन आधार में विभक्त किया हैं- आर्थिक, सैनिक और दार्शनिक तत्व।
2. प्लेटो के राजा संबंधित विचार (Plato Thought on King) – प्लेटो दार्शनिक एवं गुणवान राजा को ही राजा की संज्ञा देतर है। उनके अनुसार वही राजा उत्तम है जिसमे विवेक,साहस एवं तृष्णा का भाव हो वह एक कुशल योद्धा होना चाहिए। वह ज्ञान का भंडार होना चाहिए।
प्लेटो के अनुसार राजा को किसी भी संबंध में यह पूर्ण अधिकार होना चाहिए कि वह अपने आदेशों का पूर्ण पालन करा सकें अर्थात वह एक निरंकुश राजतंत्र की बात करते हैं। निरंकुश राजा के साथ ही प्लेटो उसे संविधान की सीमाओं में भी बांध देते है और वह यह भी कहते है कि राजा का निर्णय सदैव न्याय की ओर होना चाहिए।
3. प्लेटो के साम्यवाद संबंधित विचार (Plato Thoughts on Communism) – प्लेटो ने अपने साम्यवाद को दो भागों में विभक्त किया हैं –
★ संपत्ति का साम्यवाद – प्लेटो ने संपत्ति के साम्यवाद में शासक और सैनिक वर्ग को सम्पति के अधिकार से वंचित रखा है। उनके अनुसार संपत्ति मनुष्य की भ्रष्ट करने का कार्य करता हैं। उन्होंने उत्पादन वर्ग को ही संपत्ति रखने का अधिकार दिया है क्योंकि वह राज्य के नागरिकों का भरण-पोषण करता है और राज्य की आय में वृद्धि कर राज्य एवं समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
★ पत्नियों का साम्यवाद – प्लेटो परिवार का विरोधी था, उसके अनुसार परिवार सैनिक और शासक वर्ग में भ्रष्टता का भाव उत्त्पन्न करने का कार्य करता हैं। परिवार के कारण व्यक्ति के अंदर स्वार्थ एवं अहम् का भाव प्रकट करता हैं। उसने इन दोनों वर्गों के लिए संयुक्त परिवार का सुझाव दिया हैं।
उसके अनुसार शासक और सैनिक वर्ग प्रत्येक नारी को अपनी पत्नी के रूप में देखें और प्रत्येक बालकों को अपने बच्चों के रूप में। उसके इस कथन के कई आलोचक हैं। प्लेटो के अनुसार शासक और सैनिक वर्गों का विवाह राज्य के नियंत्रण में सिर्फ बालको के जन्म हेतु कराया जाएगा, परंतु स्त्री और पुरुष यह नहीं देख पाएंगे कि उनके पुत्र कौन है।
4. प्लेटो के न्याय संबंधित विचार (Plato Thought on Justice) – प्लेटो ने अपनी पुस्तक “द रिपब्लिक” (The Republic) में न्याय की पूर्ण व्याख्या प्रकट की हैं। प्लेटो के समस्त राजनीतिक विचारों (Plato Political Thought) का उल्लेख उसके अंतर्गत किया गया हैं। प्लेटो न्याय को प्रत्येक क्षेत्र में लागू किया हैं। उनके अनुसार सैनिक वर्ग,शासक वर्ग और उत्पादन वर्ग सभी को न्याय के अंतर्गत रहकर ही अपने कार्यो का समापन करना चाहिए।
प्लेटो ने अपने न्याय को दो भागों में विभक्त किया हैं- सामाजिक न्याय और व्यक्तिगत न्याय। सामाजिक न्याय का उत्तरदायित्व वह शासक और सैनिक वर्ग को देते है, वही व्यक्तिगत न्याय में उनका मत है कि व्यक्ति में साहस,तृष्णा और विवेक का होना ही न्याय हैं अर्थात न्याय एक ऐसी वस्तु है जो मनुष्य के आंतरिक भाग में विद्यमान रहती है। उनके अनुसार न्याय की स्थापना करने हेतु दार्शनिक शासन का होना अनिवार्य हैं।
5. प्लेटो के शिक्षा संबंधित विचार (Plato Thought on Education) – प्लेटो ने अपने राजनीतिक विचारों (Plato political thought) में शिक्षा को भी सम्मिलित किया हैं। उनके अनुसार शिक्षा दार्शनिक शिक्षा होनी चाहिए अर्थाय जो व्यक्ति शिक्षा के प्रति जिज्ञासु होता है उसके पास आंतरिक अनुशासन के साथ-साथ सद्गुणी व्यक्ति ही शिक्षित हो सकता हैं।
प्लेटो शिक्षा के क्षेत्र को राज्य के नियंत्रण में रखते है। राज्य अर्थात राजा। उनके अनुसार शिक्षा की व्यवस्था करना और उसका क्रियान्वयन करवाना राज्य का कार्य है और वह समानता के सिद्धांतों पर बल देते हुए कहते है कि स्त्री हो या पुरुष सभी को समान रूप से शिक्षा प्रदान करवाना राज्य का कार्य है। वह शिक्षा को एक सामाजिक प्रक्रिया मानते हैं।
प्लेटो शिक्षा की संरचना का निर्माण दो आधार पर करते हैं- प्राथमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा। प्राथमिक शिक्षा को वह जन्म से 20 वर्ष तक कि आयु में प्रदान करते है जिसमें वह व्यायाम और संगीत पर अधिक बल देते हैं। वही उच्च शिक्षा का कार्यकाल वह 20 से 35 वर्ष को मानते है और इस शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण वह यह कहकर करते है कि उच्च शिक्षा का उद्देश्य शासक वर्ग का निर्माण करना होगा। इस शिक्षा में छात्रों के व्यक्त्वि का निर्माण किया जाता है। उनमें विवेक,साहस एवं एक योद्धा के गुणों का विकास किया जाता हैं।
निष्कर्ष Conclusion –
प्लेटो एक महान राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक थे। प्लेटो के समस्त विचारों को राजनीति का लेख माना जाता हैं। राजनीति के विकास में उनके विचारों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं। वह सदैव दार्शनिक कार्यो पर बल देते थे, ताकि समाज मे मानवता और सहयोग की भावना का विकास हो सकें और वह एक न्यायप्रिय वातावरण के निर्माण की बात करते थे।
तो दोस्तो, आज आपने प्लेटो के राजनीतिक विचारों (Plato Political Thought in Hindi) के बारे में जाना अगर आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई हो तो इसे अपने मित्रों के साथ भी अवश्य सांझा करें। ताकि वह भी इनके महान व्यक्तित्व एवं विचारों के संबंध में जान सकें।
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