समुदायवाद क्या हैं?

समुदायवाद (Samudayvad) , शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग माइकल Michael Sandel ने अपनी पुस्तक Liberalism and the Limits of justice, में 1982 में किया। जिसमें उन्होंने समुदायवाद को परिभाषित किया। समुदायवाद कि विचारधारा को समर्थन देने वालो में एलिस टायर , मेलिस टायर , चालर्स टायर हीगल थे। समुदायवाद व्यक्तिवाद और उदारवादी व्यक्तिवाद का आलोचक रहा हैं।

यह सभी इस बात पर जोर देते थे कि व्यक्तियों के रूप में हम में से प्रत्येक व्यक्ति जीवन मे अपनी पहचान , प्रकर्ति योग्यताओं एवं व्यवसाय की प्राप्ति सिर्फ समुदाय में रहकर ही कर सकता हैं।

समुदायवाद Samudayvad विचारधारा के विचार

समुदायवाद (Samudayvad) kya hyai

1980 से ही समुदायवाद विचारधारा का विकास होना शुरू हो गया था। इनके अनुसार व्यक्ति का अस्तित्व समुदाय से जुड़ा हुआ हैं। व्यक्ति अपने समस्त आवश्यकताओ की पूर्ति समुदायवाद (Samudayvad) के अंतर्गत ही कर सकता हैं। समुदाय ही व्यक्ति का व्यक्तिगत या नैतिकता का विकास करता है, राजनीतिक जीवन भी समुदाय से ही आरंभ होता हैं। इन प्रवर्तकों के अनुसार समाज के निर्माण एवं समाज के चरित्र का निर्माण भी समुदायवाद के आधार पर ही होता हैं। उत्तम जीवन की कल्पना सिर्फ समूह में रहकर ही कि जा सकती हैं। संस्कृति के विकास का कार्य भी समुदायवाद Samudayvad द्वारा ही किया जा सकता हैं।समुदायवाद विचारधारा के समर्थन वाले व्यक्ति अपना विकास समूह में रहकर ही मानते थे। उनके अनुसार व्यक्ति रूसो या रॉबिन्सन नहीं जो पूरी जिंदगी अकेले रहकर गुजर सकें।

समुदायवाद (Samudayvad) के अनुसार व्यक्ति अपनी पहचान एवं अपने व्यक्तित्व का निर्माण समूह में रहकर ही कर सकता हैं। समुदायवाद के अनुसार व्यक्ति अपना सर्वांगीण विकास समूह में रहकर ही कर सकता हैं।समुदायवाद के अनुसार समूह से परे व्यक्ति के अस्तित्व की कल्पना करना निरर्थक हैं। समुदायवाद विचारधारा के अनुसार किसी समाज का निर्माण भी समुदाय में रहकर ही होता हैं। समुदायवाद विचारधारा वाले लोग यही मानते हैं कि सर्वप्रथम व्यक्ति एकांकी जीवन जीता था।

फिर उसने असुरक्षा एवं संसाधनों की कमी महसूस की जिस कारण उसने समूह में रहना स्वीकार किया और फिर वह समूह परिवार बना और फिर उस परिवार के कारण एक समाज का निर्माण हुआ। समुदायवाद के अनुसार व्यक्ति अपने समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति एवं अपना शारीरिक , मानसिक , बौद्धिक , आर्थिक , राजनीतिक विकास सिर्फ समूह में रहकर ही कर सकता हैं। समाज से परे इन सभी चीजों की पूर्ति की कल्पना करना असम्भव हैं।

समुदायवाद और व्यक्तिवाद

दोस्तों व्यक्तिवाद के समर्थक यह मानते थे कि व्यक्ति समूह से ज्यादा एकांकी में अपना विकास करता हैं और वह सरकार , समाज से ज्यादा व्यक्ति के अस्तित्व पर बल देते थे।

व्यक्तिवादी विचारधारा के लोग व्यक्तिगत रूप को ज्यादा प्रमुखता देते थे। वही समुदायवाद वाले लोग समूह को प्रथम स्थान देते थे। इनका मानना था कि व्यक्ति अपना विकास समूह में रहकर ही कर सकता हैं।

समुदायवाद Samudayvad के समर्थकों के अनुसार व्यक्ति अपने विचारों , अपनी संस्कृती , और अपने चरित्र का निर्माण समूह में रहकर ही करता हैं। समूह से अलग व्यक्ति के विकास के बारे में सोचना निरर्थक एवं कल्पना मात्र है।

समुदायवाद विचारधारा के अनुसार व्यक्ति अपने जीवन में जो भी क्रियाये करता हैं वह समूह के अंतर्गत ही करता हैं। वह जब शिशु रूप में होता हैं तो समूह के रूप में वह परिवार के अंतर्गत रहता हैं और फिर जब वह धीरे-धीरे बड़ा होता हैं तो विद्यालय और समाज के समूह के रूप में आता हैं और इस तरह उसका क्रमबद्ध विकास होता हैं समूह के द्वारा।

निष्कर्ष –

समुदायवाद एक ऐसी विचारधारा हैं जो व्यक्ति का आस्तित्व एवं पहचान सिर्फ समूह में ही मानती हैं। समुहवादियो के अनुसार समूह से अलग व्यक्ति का विकास नही हो सकता। यह कहना पुर्णतः गलत होगा कि व्यक्ति को समूह से अलग रख दिया जाए तो उसका विकास नही होगा। दोस्तों व्यक्ति का विकास एक स्वाभाविक क्रिया हैं वह किसी भी परिस्थिति में हो सकता हैं। उसके लिए किसी समूह की आवश्यकता नहीं। दोस्तों आज आपने जाना कि समुदायवाद (Samudayvad) क्या हैं? अगर आपके लिए यह पोस्ट ज्ञानवर्धक सिद्ध हुई हो तो इसे अपने मित्रों के साथ भी शेयर करें। ताकि वह भी ज्ञान का विस्तार कर सकें। अपने सुझाव देने के लिए हमे संदेश बॉक्स से संदेश भेजें।

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