शीत युद्ध (Cold War) क्या है, शुरुआत कब हुई और इसका प्रभाव

शीत युद्ध (Cold War) क्या है, शुरुआत कब हुई और इसका प्रभाव

इस पोस्ट में हम जानिगे की शीत युद्ध क्या है? (What is Cold War in Hindi), शीत युद्ध की परिभाषा, शीत युद्ध का उदय, शीत युद्ध के कारण, शीत युद्ध के परिणाम ,शीत युद्ध की विशेषता, एव शीत युद्ध का अंत ओर इससे जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातें।

शीत युद्ध (Cold War) शब्द अमेरिका-रूस के मध्य शत्रुतापूर्ण एव तनावपूर्ण राजनीतिक संबंधों से जुड़ा हुआ है। जिसकी शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War) के पश्चात शुरू हुई। इस युद्ध मे कूटनीति, सैनिक प्रतिस्पर्धा, जासूसी, एवं एक दूसरे के निर्णय को प्रभावित करने के लिए मनोवैज्ञानिक तरीके से भी दूसरे देशों को प्रभावित किया जाता है।

यह पोस्ट राजनीति विज्ञान से जुड़े समस्त छात्रो के लिए काफी लाभदायक है एव शीत युद्ध से संबंधित प्रश्न सभी आगामी परीक्षाओ में भी पूछे जाते है इसीलिए आखिरी तक इस पोस्ट को पड़ना आप सभी के लिए अनिवार्य है। तो चलिए सबसे पहले जाने शीत युद्ध का अभिप्राय क्या है या शीत युद्ध किसे कहते है? What is Cold War फिर इसके बाकि पहलु पर बात करेंगे।

शीत युद्ध क्या है? (What is Cold War in Hindi)

शीत युद्ध (Cold War) क्या है?

शीत युद्ध Cold War का अर्थ है कागज के गोलों अर्थात कटु विचारो को लिखित रूप देकर अखबारों के माध्यम से एवं पेपर (प्रिंट मिडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मिडिया) के द्वारा लड़ा जाने वाला विचारों का युद्ध इस प्रकार के युद्ध मे हथियारों के स्थान पर अखबारों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, एवं दूसरे देश को कूटनीति से हारने वाले युद्ध को ही शीत युद्ध कहा जाता हैं।

इस प्रकार के युद्ध मे प्रायः एक देश दूसरे देश को नीचा दिखाने के लिए या उसे विश्व मे असहाय बनाने के लिए उसकी बुराई करता है एवं अपने समाचार माध्यम के आधार पर उस देश की कड़ी निंदा करता है एवं उसके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पडी करता हैं। शीत युद्ध अमेरिका व रूस के मध्य चलने वाले विचारो के द्वन्द का नाम हैं। यह 1945 के पश्चात से 1991 तक चला। शीत युद्ध पर कुछ प्रमुख विद्वानों ने अपनी परिभाषाये दी है जो निम्न है।

डॉ० एफ प्लेमिंग महोदय के अनुसार “शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध है जो युद्ध क्षेत्र में नही,बल्कि मनुष्य के मस्तिष्क में लड़ा जाता है तथा इसके द्वारा उनके विचारों पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है।”

पंडित जवाहर लाल नेहरू महोदय के अनुसार “शीत युद्ध (Cold War) दिमागों में युद्ध के विचारों को प्रश्रय देने वाला युद्ध है जिसका उद्धेश्य शत्रुओ को अकेला कर देना और मित्रों को जितना होता हैं।

शीत युद्ध की उत्त्पति के कारण

विश्व में शीत युद्ध का उदय तब हुआ जब द्वितीय विश्व युद्ध 1945 में अमेरिका ने जापान पर परमाणु हथियारों का प्रयोग किया और अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया तब रूस के राष्टयपति स्टॅलिन ने यह महसूस किया कि अमेरिका ने उससे इस रहस्य को इसीलिए छुपाया ताकि साम्यवाद को वह आगे चलकर समाप्त कर सके इस तरह शुरू हो गया शीत युद्ध का दौर। रूस को असुरक्षा की भावना महसूस होना शीत युद्ध का प्रमुख कारण माना जाता हैं। इसके अलावा भी शीत युद्ध के कुछ प्रमुख कारण थे जो निम्न प्रकार है:

  1. युद्धकाल में रूस को अपर्याप्त सहायता – रूस ने यह आरोप लगाया कि युद्धकाल में जर्मनी द्वारा रूस पर आक्रमण होने पर पश्चिमी देशों ने जो सैनिक सहायता रूस को भी वह बहुत कम थी।
  2. साम्यवादी क्रांति का प्रभाव – 1917 की बोल्शेविक क्रांति के समय से ही पश्चिमी राष्टय सोवियत संघ को समाप्त का प्रयत्न कर रहे थे क्योंकि साम्यवाद एक विश्वव्यापी आंदोलन था। 
  3. फुल्टन घोषणा – 5 मार्च,1946 की “फुल्टन घोषणा” ने सोवियत रूस को तनाव में डाल दिया।
  4. टर्की पर रूसी दबाव – जब टर्की में रूस का दबाव बढ़ने लगा तो अमेरिका ने उसे चेतावनी दी कि टर्की पर किसी भी आक्रमण को सहन नही किया जाएगा।
  5. अमेरिका में रूसी प्रचार – रूस ने अमेरिका में भी साम्यवादी प्रचार करना शुरू कर दिया था तथा अमेरिका इसके विरोध में था वह पूंजीवादी विचारधारा का समर्थन करता था।
  6. रूस द्वारा शांति व्यवस्था में बाधा – शांति व्यवस्था में रूस द्वारा इतनी बाधा डाली गई कि शांति व्यवस्था कायम करना मुश्किल हो गया था।
  7. अमेरिका विरोधी प्रचार – सोवियत के समाचार-पत्रो में अमेरिका की नीतियों के विरोध में आलोचनात्मक तरीके से लिखना शुरू कर दिया।
  8. रूस द्वारा जर्मनी पर अत्यधिक भार – रूस ने जर्मनी के उद्योगों को छिन्न भिन्न कर दिया एवं अधिक मूल्य की मशीनों को रूस में वापस बुलवा लिया। जिस कारण जर्मनी की आर्थिक व्यवस्था काफी हद तक बिगड़ गयी।

शीत युद्ध का परिणाम (Impact of Cold War in Hindi)

शीत युद्ध (Cold War) का परिणाम यह हुआ कि विश्व मे दो गुटो का निर्माण हो गया एक नाटो (NATO) ,वारसा (VARSA) जहा नाटो अमेरिका का गट था वही वारसा रूस का था और इन दोनों गुटों ने विश्व को अपने अपने गुटो में मिलाना शुरू कर दिया जिस कारण विश्व के सामने अनेक समस्याये उत्पन्न हो गयी उसी बीच गुटनिरपेक्ष नाम का प्रथक गट बना जिसमे भारत भी सम्मिलित था।

यूरोप की राजनीति में साम्यवादी कट्टरपंती को गिरते देखा गया। पोलैंड, चेकोस्लाविया तथा रोमिया के राजनीतिक परिवर्तन ने यह स्पष्ट कर दिया कि विश्व मे राजनीतिक व्यवस्थायें स्वेछा से चयन की जानी चाहिए। उधर बर्लिन की दीवार भी गिर गयी। दोनो जर्मनी एक हो गए। अमेरिका के राष्ट्यपति जार्ज बुश ओर गोर्बाचोव (सोवियत) ने एक नए युग का श्रीगणेश का कार्य प्रारंभ कर दिया।

भारत और शीत युद्ध

भारत ने शीत युद्ध (Cold War) के दौरान हमेसा यही कोशिश की कि वह इस युद्ध से दूर रहे तथा किसी भी गुट का समर्थन ना करे। चाहे वह अमेरिका का (नाटो) हो या फिर रूस का (वारसा)। भारत ने इन दोनों गुटो से दूर रहने के लिए एक पृथक गुट का निर्माण किया जिसे गुट-निरपेक्ष कहा जाता है इसमें वह देश सामिल थे जो उन दो गुटों (नाटो-वारसा) में नही थे इन देशों में पाकिस्तान भी था जो गुटनिरपेक्ष का हिशशा था। ओर इस युद्ध मे भारत खुद को दूर रखने में काफी हद तक सफल भी रहा ओर यही भारत के लिए अधिक लाभदायक रहा क्योंकि उसे वर्तमान में दोनों देशों से उचित सहायता मिलती है जो भारत की सुरक्षा के लिए भी अधिक लाभदायक है।

शीत युद्ध की समाप्ति कब हुई (End of Cold War)

सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्यपति मिखाइल गोर्बाचोव ने अमेरिका के साथ अपने राष्टय नीति को नई तरीके की योजना के रूप में प्रस्तुत किया। इससे दोनों महाशक्तियों के बीच आपसी संबंधों में मित्रता के भाव उत्त्पन्न हुए इस तरह शीत युद्ध का समापन हो गया। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात पुर्णतः खत्म हो गया एव साम्यवादी विचारधारा की कट्टरपंती का खात्मा हो गया।

शीत युद्ध Cold War की समाप्ति के कुछ प्रमुख कारण थे जो निम्न है:

  1. उदारवादी विचारधार –  विश्व युद्ध के पश्चात स्टालिन का युग सोवियत संघ की विदेश नीति का सबसे कट्टर युग था। अतः उन्होंने उग्रता के मार्ग को छोड़ने में रुचि दिखाई एवं दूसरे देशों के प्रति उदारवादी नीति को प्रमुखता दी।
  2. तटस्थता की राजनीति – फ्रांस नाटो के लिए ज्यादा धन खर्च नही करना चाहता था और ज्यादातर मामलों में तटसत्ता के प्रति समर्पित था।
  3. जनमत का महत्व – युद्ध जनता के लिए सदा एक बोझ रहा है। यह विनाश को न्योता देता है एवं इसमे सदा से ही जनता को नुकसान का सामना करना पड़ा है जिस कारण विश्व की समस्त जनता युद्ध के खिलाफ थी।
  4. यूरोप में बदलाव – यूरोप में राजनीतिक सोच समझ मे बहुत परिवर्तन आये है। जर्मनी की दीवार का टूटना, पोलैंड में राजनीतिक कट्टरता में कमी एवं चेकोस्लाविया तथा यूगोस्लाविया आदि की संबंधो में मित्रता का भाव आना।
  5. अमेरिका अकेला महाशक्ति – शीत युद्ध के समापन के पश्चात विश्व राजनीति में जो एक नया बदलाव यह आया कि रूस के सोवियत संघ का विघटन हो गया था अर्थात विश्व मे केवल एकमात्र ही शक्ति बची थी और वह था अमेरिका।
  6. असंलंग्नता का प्रभाव शीत – द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात नेहरू , नासिर , टीटो की विचारधारा की विचारधारा यह रही है कि विश्व को शीत युद्ध से बचाया जाए ।

शीत युद्ध की विशेषताये

  • शीत युद्ध मे प्रचार-प्रसार को महत्व दिया जाता है क्योंकि शीत युद्ध लड़ने के लिए समाचार ,अखबारों एव कूटनीति के माध्यम से यह युद्ध लड़ा जाता है यह एक वाक्य युद्ध हैं।
  • शीत युद्ध को दिमागों में युद्ध के प्रश्नय देने वाला युद्ध कहा जाता है क्योंकि इसमें युद्ध जैसे हालात सामने आ जाते है परंतु युद्ध होता नही हैं।
  • शीत युद्ध विचारो का ही नही बल्कि रूस और अमेरिका जैसी महाशक्ति के मध्य चलने वाले संगर्ष का नाम हैं।
  • दोनो महाशक्तियों के मध्य तनावपूर्ण स्थिति को शीत युद्ध कहा जाता हैं।
  • शीत युद्ध में सैनिक हस्तक्षेप, सैनिक संधियों, को मजबूत करने की स्तिथि प्रकट हो जाती है।
  • शीत युद्ध को बोलकर लड़ा जाने वाला युद्ध भी कहा जाता हैं।

शीत युद्ध का दौर प्रश्न-उत्तर

प्रश्न- शीत युद्ध (Cold War) में कोन से देश शामिल थे?
उत्तर- शीत युद्ध में अमेरिका और रूस देश शामिल थे।

प्रश्न- इसे शीत युद्ध क्यों कहा गया?
उत्तर-इसे शीत युद्ध इसीलिए कहा गया क्योंकि इसमें युद्ध जैसी परिस्थितिया उत्पन्न होती है पर युद्ध नही होता।

प्रश्न- शीत युद्ध किसने जीता?
उत्तर-शीत युद्ध अमेरिका ने जीता।

प्रश्न- शीत युद्ध शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया था?
उत्तर-शीत युद्ध शब्द का प्रयोग सबसे पहले जॉर्ज ऑरवेल ने 1945 में किया था।

प्रश्न- शीत युद्ध कब से कब तक चला?
उत्तर-शीत युद्ध 1945 से 1991 तक चला क्योंकि 1991 को सोवियत संघ का विघटन हो गया था।

निष्कर्ष

शीत युद्ध अमेरिका और रुस के मध्य तनावपूर्ण संबंधों का नाम है यह 1945 से 1991 तक चला तथा इसका निष्कर्ष यह निकला कि सोवियत संघ का विघटन हो गया। वैचारिक ,आर्थिक, राजनीतिक मतभेदों में शीत युद्ध को जम्म दिया था। यह हमेशा चलता रहा कभी एक पक्ष अपनी श्रेष्ठता स्थापित करता तो कभी कोई। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात साम्यवादी विचारधारा का समाप्त हो गया और शीत युद्ध समाप्त हो गया और अब यही एक सत्य है कि विश्व मे अब एक जी “सुपर पावर” है और वह अमेरिका है।

दोस्तो आज हमने जाना कि शीत युद्ध क्या है (Cold War in Hindi) शीत युद्ध के परिणाम, शीत युद्ध का उदय आदि। आप सभी को इस पोस्ट से काफी कुछ जानने को मिला होगा ऐसी ही ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त करने के लिए लगातार मेरी वेब साइड पर अपने लाभ से जुड़ी पोस्ट को पड़ते रहे एवं लाभ अर्जित करते रहे।

संबंधित पोस्ट – सामाजिक अध्ययन क्या है

13 Comments

  1. अपने यह लेख बहुत अच्छा लिखा है। सर
    आपके इस लेख से हमें काफी कुछ पता चला और हमे हमारे प्रश्नों के उत्तर भी मिले हैं जिनकी वजह से हम दुविधा में थे यह जाने के लिए की आखिर तब हुआ क्या था।

    • धन्यवाद ज्योति हमें यह जानकर बहुत अच्छा लगा।

      • अशोक कृपया शुद्ध शब्दों में अपने विचार प्रस्तुत करें।

      • क्युकी रूस ने अपने सैनिक शक्ति को बढ़ाने के चक्कर में अपनी पूरी आय उसी में लगा दी। जिस कारण देश की स्थिति बिगड़ गयी और वो कमजोर हो गया मिखाइल गोर्बाचोव के राष्ट्रपति बनने पर रूस ने शीत युद्ध का अंत करना ही सही समझा और देश के हालत सुधारने की तरफ अपना ध्यान केन्दित किया।

    • रचना इस काल को विद्वानों ने शीत युद्ध का नाम दिया हैं यह एक प्रकार का युद्ध ही था। आप हमारी इस पोस्ट को ध्यानपूर्वक पढ़े।

  2. Arjoo choudhary

    Thanx sir aapki is post se meko bhtt hlp mili h thanku once again

  3. Ravindra yadav

    सर् हमने पढ़ा है कि शीत युद्ध मे अमेरिका और रूस द्वारा युद्ध नही लड़ा गया लेकिन एक वीडियो में हमने देखा है कि दोनों देश दूसरे देशों में युद्ध की स्थिति पैदा कर देते थे जैसे भारत द्वारा लिट्टे का समर्थन करके श्रीलंका में गृह युद्ध करा दिया और बाद में समाप्त भी किया वैसे ही चीन ने नेपाल में माओवादियों के समर्थन किया
    क्या भारत भी इनडाइरेक्ट रूप से रूस की मदद कर रहा था

    • भारत एक गुटनिरपेक्ष राज्य हैं और भारत के रूस और अमेरिका दोनों से आर्थिक एव राजनैतिक सम्बन्ध हैं। ऐसे में भारत न रूस का सपोर्ट कर सकता हैं और न ही नाटो ग्रुप का जिस कारण भारत सिर्फ शांति की बात कर रहा हैं। क्युकी दूसरे के सपोर्ट में बोलना मतलब आर्थिक नुकसान का सामना करना ऐसे में भारत सभी गुटों से भिन्न रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *