राज्य के नीति निर्देशक तत्व Directive Principles of State Policy नीति निर्माण करने की प्रक्रिया एवं कल्याणकारी राज्य के निर्माण करने की नीति या तत्व हैं। जिसके अनुसार राज्य को किसी कानून या नियमों का निर्माण करते समय इन तत्वों को सम्मिलित करना चाहिए।
नीति निर्देशक तत्व जिनको संविधान के भाग-4 एवं अनुच्छेद 36-51 मे रखा गया हैं। आज हम इसके प्रत्येक अनुच्छेद के संबंध में चर्चा कारिंगे और इसके संबंध में विस्तार से जनिंगे।
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राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy)
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की संरचना को आयरलैंड (Ireland) के संविधान से लिया गया हैं। भारत के संविधान द्वारा इन तत्वों को अपनाने का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था। राष्ट्र के विकास हेतु नीति निर्माण के समय इन तत्वों को अवश्य ध्यान में रखा जाय हैं। संविधान के अनुसार राज्यों को कानूनों के निर्माण के समय इन तत्वों का समावेश करना चाहिए। परंतु यह उनके लिए बाध्यकारी नही हैं और यह सिर्फ सुझाव प्रदान करने का मात्र एक जरिया हैं।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (directive principles of state policy) को तीन भागों में विभाजित किया गया हैं- समाजवाद, गाँधीवाद और उदारवाद। इनके विचारों को संगठित कर नीति निर्देश तत्वों में इनकी विवेचना की गई हैं। जिसके द्वारा शासन प्रशासन की गुणवत्ता में सुधार किया गया हैं। संविधान के अनुच्छेद 36-51 में इन्ही विचारों को सम्मिलित रूप में देखा जा सकता हैं। नीति निर्देशक तत्व अपरिवर्तनीय होते हैं एवं इन्हें न्यायालय मे किसी भी व्यक्ति द्वारा चुनोती नही दी जा सकती। क्योंकि इन्हें मात्र सुझाव के आधार पर स्थान दिया गया है। इनके तत्वों को अपनाने हेतु सरकार किसी प्रकार से बाध्य नही होती।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की विशेषता (Characteristics of Directive Principles of State Policy)
1. इनमें गाँधीवाद,उदारवाद और समाजवाद की विचारधाराओं का समावेश होता हैं।
2. इनका विकास लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने हेतु किया गया हैं।
3. सरकार इन तत्वों को अपनी नीतियों में समावेश करने हेतु किसी प्रकार से बाध्य नहीं होती।
4. इनको न्यायालय के समक्ष चुनोती नही दी जा सकती, अर्थात यह तत्व अपरिवर्तनीय होते हैं।
5. इन तत्वों को आयरलैंड के संविधान से अंगीकार किया गया हैं तथा इन्हें संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36-51 में संरक्षित रखा गया हैं।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के उद्देश्य (Objectives of Directive Principles of State Policy)
● लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना – संविधान द्वारा इन तत्वों को अंगीकार करने का मुख्य उद्देश्य एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था। जिसके द्वारा सार्वजनिक हित एवं उत्तरदायित्वों के प्रति सरकार को सचेत किया जा सकें। इसी उद्देश्य की प्राप्ति करने हेतु गाँधीवाद,समाजवाद और उदारवाद के तत्वों को अपनाया गया हैं।
● लोकतंत्र की स्थापना – इनकी स्थापना करने के पीछे यह उद्देश्य था कि लोकतंत्र की भावनाओ का विकास किया जा सकें। अर्थात समानता,स्वतंत्रता एवं जन सामान्य के अधिकारों को संचित कर उन्हें उनके अधिकार प्रदान किये जा सकें।
● उत्तरदायित्व की स्थिति उत्पन्न करना – सरकार को उनके उत्तरदायित्वों के प्रति सचेत करना एवं उनके नीति -निर्माण के वास्तविक उद्देश्यों को प्रकट करना। महत्वपूर्ण पद में आसीन व्यक्तियों एवं बुद्धिजीवियों को उनके वास्तविक उद्देश्यों की ओर परिलक्षित करना।
● आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र – इन तत्वों के अपनाने का मुख्य उद्देश्य राज्य (देश) मे आर्थिक एवं सामाजिक समानता को बढ़ावा देना था। जिस कारण समाज मे शांति और सहयोगात्मक भावना का विकास किया जा सकें।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का अनुच्छेद के आधार पर विवरण निम्न हैं –
अनुच्छेद संख्या | अनुच्छेद के अंतर्गत लिखित विवरण |
---|---|
36 | राज्य के अर्थ को परिभाषित करने का कार्य |
37 | परिवर्तनीय एवं बाध्यकारी न होना |
38 | कल्याण हेतु न्याय की स्थापना |
39 | लोकतंत्र के विकास हेतु कार्य |
40 | ग्रामीण विकास |
41 | निश्चित स्थिति में सहायता पाने का अधिकार |
42 | सहायता हेतु विशेष प्रावधान |
43 | निर्धन कल्याण योजना |
44 | समानता के तत्वों की विवेचना |
45 | शिक्षा की अनिवार्यता पर बल |
46 | निम्न जाति एवं वर्ग के विकास की योजना |
47 | लोक कल्याणकारी राज्य के निर्माण हेतु प्रावधान |
48 | कृषि,पशुपालन एवं पर्यावरण |
49 | स्मारकों को सुरक्षित एवं संरक्षित |
50 | कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के मध्य विभाजन |
51 | वैश्विक तत्वों का समावेश |
यह भी जाने – मौलिक कर्तव्य Fundamental Duties क्या हैं?
इन समस्त अनुच्छेदों के अध्ययन के पश्चात यह सिद्ध हो जाता है कि नीति निर्देशक तत्वों को अपनाने हेतु संविधान निर्माताओं में किस दृष्टिकोण को प्रवाह हुआ होगा।
राज्य के नीति निर्देशक तत्व और मौलिक अधिकारों में अंतर (Difference Between Directive Principles of State policy and Fundamental Rights)
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों एवं मौलिक अधिकारों में सबसे बड़ा अंतर यह है कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन होने पर हम न्यायालय के समक्ष जा सकते है परंतु नीति निर्देशक तत्वों के उल्लंघन होने पर हम उन्हें न्यायालय के समक्ष चुनोती नही दे सकतें।
मौलिक अधिकारों fundamental rights को प्रदान करने हेतु सरकार बाध्य होती है और सामान्य परिस्थितियों में किसी भी द्वारा इसका हनन नही किया जा सकता। जबकि नीति निर्देशक तत्वों को अपनी नीतियों एवं कानूनों में समावेश करने हेतु सरकार किसी भी प्रकार से बाध्य नही होती।
मौलिक अधिकारों का संबंध व्यक्ति से होता हूं जबकि नीति निर्देशक का संबंध राज्य एवं उसकी योजनाओं से होता है। जहाँ मौलिक अधिकारों में सूक्ष्म नकारात्मकता दिखाई पड़ती है वही नीति निर्देशक तत्व पूर्ण रूप से सकारात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण होते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
नीति निर्देशक तत्वों का विकास मानवता की रक्षा करने एवं एक सभ्य समाज की स्थापना करने हेतु किया गया है। परंतु इसके उद्देश्यों की प्राप्ति तभी संभव है जब राज्य इसके तत्वों को अपनी नीतियों एवं विचारों में सम्मिलित करें।
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