किशोरावस्था (Adolescence in Hindi)

किशोरावस्था Adolescence की अवधि 13 से 18 वर्ष के मध्य हिती हैं। किशोरावस्था को अंग्रेजी भाषा में Adolescence कहते है। जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के Adolescere से हुई हैं। जिसका अर्थ हैं-प्रजनन क्षमता एवं परिपक्वता का विकास।

यह वह अवस्था होती हैं, जिसमें बालक पूर्ण रूप से परिपक्व हो जाता हैं और वह सभी प्रकार के मूर्त व अमूर्त चिंतन करने लगते हैं। यह वह अवस्था होती है जिसमे बालकों में प्रेम की भावना का विकास तीव्र गति से होता हैं।

यह बाल्यवस्था के बाद कि अवस्था हैं। इस अवस्था मे आने के पश्चात बालक अकेले रहना बिल्कुल पसंद नही करते अकसर उन्हें अपनी मित्र मंडली के साथ रहना एवं समय व्यतीत करना पसंद होता हैं। आज हम बालकों के किशोरावस्था के संबंध में विस्तार से जनिंगे। हमारा यह लेख B.Ed,M.Ed,C.TET,U.TET जैसी परीक्षाओं में सफल होने हेतु अत्यंत आवश्यक हैं कृपया इसे समाप्ति तक पढ़े व समझें।

किशोरावस्था की परिभाषा (Definition of Adolescence)

Adolescence kya hain hindi

रॉस महोदय के अनुसार – “किशोर समाज सेवा के आदर्शों का निर्माण व पोषण करते हैं।”

वेलेंटाइन महोदय के अनुसार – “किशोरावस्था अपराध प्रवर्ति के विकास का नाजुक समय हैं।”

क्रो एंड क्रो महोदय के अनुसार – “किशोर ही वर्तमान की शक्ति एवं भावी आशा को प्रस्तुत करता हैं।”

जरशील्ड महोदय के अनुसार -“किशोरावस्था वो समय हैं जिसमें विचारशील व्यक्ति बाल्यवस्था से परिपक्वता की ओर संक्रमण करता हैं।”

जॉन्स महोदय के अनुसार – “किशोरावस्था, शैशवावस्था की पुनरावृत्ति का काल हैं।”

विभिन्न परिभाषाओं को ध्यान में रखते हुए –

इस अवस्था में छात्रों का विकास तीव्र गति से होता हैं। यह वह अवस्था होती हैं, जिसमें छात्र परिपक्वता की ओर अग्रसर होता हैं। इस अवस्था मे लड़को की अपेक्षा लड़कियों का विकास तीव्र गति से होता हैं।

इस अवस्था में छात्रों का शारिरिक मानसिक सामाजिक बौद्धिक सभी का विकास अपनी चरम सीमा में होता हैं। यह अवस्था छात्रों के बिगड़ने एवं सुधरने की अवस्था होती हैं।

(स्टेनली हॉल ने इसे नए जन्म काल की अवस्था माना हैं और वह कहते हैं कि यह दबाव,संघर्ष,तनाव का काल होता हैं।)

किशोरावस्था की विशेषता (Characteristics of Adolescence)

1. यह सर्वाधिक काम प्रवर्ती एवं आकर्षण की अवस्था होती हैं।

2. इस अवस्था में छात्रों का सर्वांगीण विकास (शारिरिक, मानसिक,बौद्धिक,सामाजिक,सांस्कृतिक) होता हैं।

3. यह अवस्था तार्किक एवं अमूर्त चिंतन की अवस्था होती हैं।

4. इस अवस्था में छात्रों के अंदर समाज सेवा की प्रवर्ति अधिक दिखाई देती हैं। इस समय वह सामाजिक कार्यो में अधिक रुचि लेने लगते हैं।

5. यह छात्रों के परिवर्तन का काल होता हैं। इस अवस्था में छात्रों की मानसिक स्थिति में तनाव,संघर्ष एवं दबाव के भाव विद्यमान रहते हैं। – स्टेनली हॉल के अनुसार।

6. यह छात्रों के जीवन का सबसे कठिन काल होता हैं। इस अवस्था में विकास की गति लड़को की अपेक्षा लड़कियों में अधिक होती हैं।

7. इस अवस्था में छात्रों का संवेगात्मक विकास तीव्र गति से होता हैं।

इस अवस्था मे बालक अपने किसी प्रिय व्यक्ति का अनुसरण करता हैं एवं उसकी अच्छाई-बुराई को अपने भीतर समाहित करने लगता हैं। इस अवस्था में प्रायः छात्रों में विशिष्ट दिखने की प्रवर्ति का विकास होता हैं। जिस कारण वह अपने पहनावे,खान-पान,व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं।

किशोरावस्था में विकास के सिद्धांत (Principles of Development in Adolescence)

● क्रमिक विकास का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार बालको का विकास एक क्रम के अनुसार होता हैं अर्थात गर्भावस्था,शैशवावस्था,बाल्यवस्था और किशोरावस्था। इन विभिन्न चरणों में छात्रों का विकास धीरे-धीरे करके होता हैं।

● त्वरित विकास का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार शैशवावस्था एवं बाल्यवस्था से अधिक किशोरावस्था में विकास की गति तीव्र होती हैं।

निष्कर्ष –

यह वह अवस्था होती हैं, जिसमें बालकों में अपने परिवर्तन होते हैं। जो उन्हें उनके भावी भविष्य की ओर अग्रसर करने में उनकी सहायता करता हैं। इस अवस्था मे छात्रों का उचित मार्गदर्शन अति आवश्यक है, क्योंकि यही वह उम्र होती हैं जो छात्रों के भविष्य को निर्धारित करती हैं।

तो दोस्तों, आज आपने जाना कि किशोरावस्था क्या हैं? (Adolescence in Hindi) हम आशा करते हैं कि आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आई हो।
धन्यवाद!

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