सृजनात्मक – Creativity Meaning in Hindi

सृजनात्मक Creativity का अर्थ है, नवीन क्रियाओं एवं नवीन विचारों को उत्पन्न करने की सकती, या नवीन खोज करने की सकती अर्थात किसी के पीछे – पीछे ना चलकर अपनी एक नई राह बनाने की सोच को ही हम सृजनात्मकता कहते है इस पोस्ट में हम समझेंगे की सृजनात्मकता क्या है, का अर्थ , प्रकार आदि। इस पोस्ट के माध्यम से आपको सृजनात्मक के बारे में सारी सूचनाये प्राप्त हो पाएंगी। इसके बारे में जानने के लिए हमारी पोस्ट को अंत तक देखे ।

जैसा कि आपको बताया जा चुका है कि सृजनात्मकता का अर्थ होता है नवीन ज्ञान की खोज करना या किसी भी क्षेत्र में जब कोई व्यक्ति नवीन खोज करता है या नये विचारो का निर्माण करता है तो हम उस व्यक्ति के व्यक्तित्व को Creative मानते हैं एवं ऐसे लोगों की हर जगह अपने स्तर में प्रसंशा होती है ऐसे व्यक्ति सदैव सैद्धान्तिक विचारो वाले ना होकर व्यवहारवादी विचारो वाले होते हैं (Creativity) शब्द में कई बुद्धिजीवियों ने अपने विचारों को प्रकट किया हैं जैसे –

सृजनात्मक Creativity

“यह वह विचार है जो किसी समूह में विस्तृत सातत्व का निर्माण करता है। सृजनात्मक के कारक है – साहचर्य,आदर्शात्मक मोलिकता, अनुकूलता,सातत्यता,लोच एव तार्किक विकास की योग्यता।”

गुड

” यह वह क्रिया है जिसका हल यकायक प्राप्त हो जाये,क्योंकि इस प्रकार का हल विचारक के लिए सदैव नवीनता लिए होता हैं।”

थर्स्टन

सृजनात्मक का अर्थ

सृजनात्मकता की विशेषतायें

  • इसमे नवीन तत्वों का समावेश होता है।
  • यह एक योग्यता है।
  • इसके द्वारा व्यक्तियों में प्रतिभा का विकास होता है।
  • जिस कार्य मे यह पायी जाती है वो समाज के लिए हितकारी होता है।
  • यह पॉजिटिव एवं नेगेटिव दोनो प्रकार की होती है।

यह किसी भी कार्य को एक नई दिशा प्रदान करती है। कैसे पता करें कि यह व्यक्ति Creative है कि नही…?

  • जो व्यक्ति किसी के मन एवं किसी के व्यक्तित्व को समझ पाने में सक्षम होता है वह व्यक्ति Creative होता हैं।
  • जिसके व्यक्तित्व में लचीलापन होता है अर्थात जो देश काल परिस्थितियों के अनुसार अपने व्यक्तित्व को ढाल सके ऐसे व्यक्ति Creative होते हैं।
  • ऐसे व्यक्तियों का बौद्धिक स्तर उच्च होता है।
  • ऐसे व्यक्तियों की काल्पनिक शक्ति भी उच्च होती है।
  • ऐसे छात्रों में जिज्ञासा का आभाव अत्यधिक होता है।
  • वह वास्तविक एवं व्यावहारिक होते है।
  • यह बालक दूरदर्शी होते है अर्थात वह आगे की सोचते हैं।
  • उनमे सौन्दर्यात्मक कौशल का स्तर उच्च होता है।

ऐसे ही कुछ और भी तरीके है जिनसे Creativity की पहचान की जा सकती हैं -

स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की क्षमता – जो व्यक्ति प्रायः स्वतंत्र पूर्वक निर्णय ले पाते है उनमें Creativity की मात्रा सदेव अध्यधिक होती है क्योंकि जो व्यक्ति स्वतंत्र निर्णय नही ले पाते है ऐसे व्यक्ति सदैव दुसरो के दिखाए रास्ते पर चलते है जिससे उनके बौध्दिक स्तर का विकास नही हो पाता।

संवेदनशीलता – संवेदनशीलता Creativity का एक तत्व है जो व्यक्ति अधिक संवेदनशील होते है वह हर काम को अधिक गंभीरता से लेते है जिससे उनके बौद्धिक स्तर का विकास होता है और उनके व्यक्तित्व में Creativity का भाव होता हैं।

उत्सुकता – जिन व्यक्तियों में किसी भी कार्य को करने की उत्सुकता होती है वह व्यक्ति काफी जिज्ञासु होते है उन्हें नवीन विचारो एवं खोजो को जानने समझने की जिज्ञासा होती है और ऐसे व्यक्ति नवीन विचारो का निर्माण करने में सक्षम होते हैं।

मोलिकता – जिन व्यक्तियों में मोलिकता होती है वह आदर्शवादी होती है एवं उनमे अधिक संवेदनशीलता पायी जाती है ऐसे व्यक्तियों की बौद्धिक स्तर सामान्य व्यक्तियों से अधिक होता है ऐसे में उन्हें नवीन विचारों की उत्त्पति करने में आसानी होती हैं। ऐसे व्यक्तियों को हम कह सकते है कि वह व्यक्ति सृजनात्मक Creative हैं।

सृजनात्मक के सिद्धांत

वंशानुक्रम का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार Creativity जन्मजात होती है यह बालक आपके पूर्वजो या अपने माता-पिता से लेकर आता हैं।

पर्यावरणीय सिद्धान्त – यह वंशानुक्रम के विपरीत बोलता है कि यह जन्मजात नही होती अपितु इसका विकास पर्यावरणीय अनुभवो द्वारा होता है अर्थात किसी के जीवन मे किस व्यक्ति ने समाज मे रहते हुए कितना अनुभव प्राप्त किया है।

सृजनात्मक स्तर का सिद्धांत – टेलर के अनुसार कोई व्यक्ति उसी स्तर तक Creativity का विकास कर सकता है जिस स्तर तक पहुचने की उसकी क्षमता होती हैं।

गेस्टाल्ट का सिद्धान्त – इनके अनुसार इसमे अंतर्दृष्टि है जो कि नये विचारो से उत्पन्न होती हैं।

मनोवैज्ञानिक सिद्धांत – फ्रायड के अनुसार व्यक्ति में Creativity का विकास उसके अचेतन मन मे संचित अतृप्त इच्छाओ के कारण होता है।

सृजनात्मकता का विकास

Creativity का विकास मुख्यतः चार अवस्थाओ में होता है जिसे हम इस माध्यम से समझ सकते है –

1. प्रथम अवस्था – यह 5 या 6 वर्ष की आयु में आती है इस अवस्था मे बालक स्कूल जाता है स्कूल से बालक का बौध्दिक विकास होता है वह नयी-नयी बातो को जानता है उसे समझता है एवं नवीन अनुभव प्राप्त करता है जैसे प्रायः बच्चे स्कूल से घर आकर नवीन प्रकार के चित्रों का निर्माण करते है अर्थात उनमे Creativity का विकास हो रहा हैं।

2. द्वितीय अवस्था – 8 से 10 वर्ष की आयु तक चलती है इस अवस्था मे बालक समूहों में जाता है जैसे वह स्कूल में समूह के साथ पड़ता है,खेलता है जिससे उसके दृष्टिकोण में परिवर्तन आता है उसके विचारों में उस समूह के गुण अथवा अवगुण आते है ऐसे में वह कार्य मे नवीनता लाने का प्रयास करता है।

3. तृतीय अवस्था – यह अवस्था 13 से 15 वर्ष तक चलती है इस अवस्था मे बालक में क्रांतिकारी परिवर्तन लाती है इस अवस्था मे बालक ये प्रयास करता है कि सभी उसको महत्व दे एवं सभी उसके विचारों को प्रबलता के साथ लें,जिस कारण वह महत्व पाने के लिए सदैव नवीन विचारो को मान्यता देता है।

4. चतुर्थ अवस्था – 17 से 19 वर्ष तक चलने वाली अवस्था मे व्यक्ति महत्व पाने की लालसा में नही बल्कि प्रशिक्षण पर अधिक बल देता है वह कुछ ऐसा करने की सोचता है जो उनसे आजतक न किया हो वो नवीन खोज करने की ओर अधिक सजक रहता है।

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