बेंथम का उपयोगितावाद Bentham Utilitarianism समाज की अनेकों समस्याओं का एक समाधान हैं जो मानव की मूल-भूत आवश्यकताओं के वास्तविक स्वरूप को प्रदर्शित करने का कार्य करता है। बेंथम ने अपने उपयोगितावाद के सिद्धांत में सुख-दुख के वास्तविक स्वरूप को प्रकट किया हैं।
बेंथम के अनुसार मनुष्य को जिस कार्य के करने से सुख की प्राप्ति होती है वह कार्य उसके लिए उपयोगी और आवश्यक होता है और जो कार्य करने से उसे दुख की अनुभूति होती है वह उसके लिए उपयोगी एवं आवश्यक नहीं होता। अर्थात बेंथम का उपयोगितावाद सुख-दुख के मध्य के अंतर और उसकी उपयोगिता एवं अनुपयोगिता को क्रमबद्ध प्रकट करने का आधार हैं।
बेंथम का उपयोगितावाद से आशय (Bentham Utilitarianism)
जेरेमी बेंथम (Jeremy Bentham) एक प्रबल राजनीति विचारक एवं एक समाज सुधारक थे। यह उपयोगितावाद के प्रबल समर्थकों में से एक थे। उनका यह सिद्धांत सुख-दुख के समस्त कार्यो पर आधारित हैं। बेंथम प्रत्येक कार्य, वस्तु और मानव व्यवहार का आकलन करने हेतु सुख-दुख का उपयोग एक साधन के रूप में करते हैं।
जो कार्य करके व्यक्ति को सुख की प्राप्ति होती है वह कार्य उसके लिए उपयोगी होता है और जो कार्य करके व्यक्ति को दुःख की प्राप्ति होती है, वह उसके लिए उपयोगी नहीं होगा। बेंथम का यह सिद्धांत इसलिए भी ज्यादा प्रचलित है क्योंकि वह मात्र सुख और दुख से ही व्यक्ति के समस्त कार्यो का अनुमान लगा लेते हैं अर्थात समाज,राष्ट्र,समुदाय और व्यक्ति के लिए क्या और क्यों उपयोगी हैं। बेंथम का उपयोगितावाद सुख आधारित उपयोगितावाद हैं।
सुख आधारित उपयोगितावाद का वर्गीकरण (Classification of happiness based utilitarianism)
बेंथम ने सुख आधारित उपयोगितावाद को 14 भागों में विभक्त किया हैं-
1. व्यक्ति के ऊपर जब कोई उत्तरदायित्व नहीं होता तो वह सुख की अनुभूति करता हैं।
2. व्यक्ति अपने प्रियजनों के साथ या अपने समान विचारधारा रखने वाले मित्रों के साथ रहने का सुख।
3. व्यक्ति जब कोई ऐसी वस्तु के संबंध में सोचता है, जिसे वह पाना चाहता है तो भी उसे एक सुख की प्राप्ति होती हैं।
4. व्यक्ति को कल्पनावादी भी कहा जाता है क्योंकि वह प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व उसकी पूर्ण योजना का चित्रण अपने मन-मस्तिष्क में बना लेता है और उसकी सफलता को सोच उसे प्रसन्ता होती हैं।
5. निर्दयता संबंधित सुख अर्थात वह व्यक्ति जो दूसरों के सुख-दुख के संबंध में बिना सोचे अपना जीवन यापन करें।
6. जब कोई व्यक्ति किसी की सहायता करता है तो उसे आंतरिक सुख की प्राप्ति होती हैं।
7. किसी व्यक्ति की अपने धर्म के प्रति अटूट आस्था उसे सुख प्रदान करती हैं।
8. जब व्यक्ति के पास राजनेतिक,आर्थिक या सामाजिक शक्ति हो तो वह अपने को सौभाग्यशाली महसूस करता हैं।
9. जब किसी व्यक्ति के पास अनेकों चीजे हो अर्थात आवश्यकता से अधिक हो तो वह व्यक्ति को सुख की अनुभूति होती हैं।
10. जब व्यक्ति के पास हमउम्र वाले खास मित्र हो जिससे वह हर एक बात सांझा कर सकें तो उन्हें सुख की अनुभूति होती हैं।
11. जब कोई व्यक्ति को किसी कार्य को करने हेतु विशिष्ट कला हो जिसमें वह बेहतर हो तो ऐसे में उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती हैं।
12. जब किसी व्यक्ति के पास अधिक धन या संपत्ति हो तो वह खुद को दूसरे से बेहतर समझता हैं।
13. ऐंद्रिक सुख अर्थात जो आंतरिक रूप से अनेको परिस्थितियों में सुख प्रदान करवाता है, आत्मबल,आत्मविश्वास आदि।
14. स्मरण सुख अर्थात सुखद पलो को याद कर मुस्कुराना या सुखी होने की अनुभूति करना।
बेंथम का उपयोगितावादी सिद्धान्त (Bentham Utilitarianism) का पूर्ण आधार सुख है। बेंथम के अनुसार व्यक्ति को जो भी कार्य करने से उसे सुख की अनुभुति हिती है, उस vgakti को वहीं कार्य करना चाहिए क्योंकि वह कार्य उस व्यक्ति के लिए उपयोगी होता हैं। बेंथम के अनुसार सुख विभिन्न प्रकार के होते है परंतु सभी प्रकार के सुखों में गुणात्मक समानता पाई जाती हैं।
बेंथम के उपयोगितावाद की उपयोगिता या आवश्यकता
◆ यह व्यक्ति के मानसिक पहलुओं को समझने के परिक्षणकर्ता की सहायता करता हैं।
◆ यह समाज की वास्तविक आवश्यकताओं को प्रकट करने का कार्य हैं।
◆ शिक्षा के क्षेत्र में छात्रों की वास्तविक अवश्यकताओ को समझने, पाठ्यक्रम तैयार करने,सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों के चयन में सहायता करता हैं।
◆ यह सिद्धांत मानसिक क्रियाओं को समझने में भी आवश्यक हैं।
बेंथम उद्देश्यों से ज्यादा परिणाम को महत्व देते है, अर्थात वह परिणाम जिससे व्यक्ति को सुख की प्राप्ति हो। बेंथम के अनुसार सुख की मात्रा को आसानी से मापा जा सकता है, उसके लिए सुख की तीव्रता और स्थिरता को उसने मुख्य स्थान दिया।
बेंथम के उपयोगितावाद की आलोचना (Criticism of Bentham utilitarianism)
बेंथम के उपयोगितावाद की आलोचना का सबसे बड़ा कारण है उसके सुख-दुख की धारणा। वह सुख-दुख के जंजालों को व्यक्ति के समग्र जीवन से जोड़ लेता है। आलोचकों के अनुसार प्रत्येक स्थिति में सुख दुख को आधार मानकर चलना सही नही होगा।
बेंथम का यह विचार की “किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति को हानि पहुँचाकर अगर सुख की प्राप्ति होती है तो वह नैतिक और मान्य हैं।” उसके इस विचार के सभी आलोचक रहे हैं। कई आलोचक उनके इस सुखवादी उपयोगितावाद को भ्रम पैदा करने वाला सिद्धांत मानते हैं। जिसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नही हैं।
निष्कर्ष Conclusion
बेंथम के उपयोगितावाद की विभिन्न आलोचनाओं के पश्चात भी बेंथम के इस सिद्धांत की उपयोगिताओं को नकारा नहीं जा सकता। बेंथम का यह सिद्धान्त सर्वमान्य और एक वास्तविक दर्शन है, जो प्रत्येक कार्य में लाभकारी सिद्ध होता हैं। बेंथम के इस सिद्धांत को सुखवादी सिद्धान्त भी माना जाता हैं।
तो दोस्तों, आज आपने बेंथम के उपयोगितावाद (Bentham Utilitarianism) की सम्पूर्ण संरचना का अध्ययन किया। अंत में अगर आपको हमारी यह पोस्ट लाभदायक लगी हो तो इसे अपने मित्रों के साथ भी अवश्य शेयर करें। साथ ही अन्य किसी प्रकरण में सूचना प्राप्त करने हेतु हमें नींचे कमेंट करके बताए।
I have read so many posts about the blogger lovers however this post is really a good piece of writing, keep it up
Rama hame yh jankr accha lga…
सर आप दर्शन के विषय में अधिक से अधिक लेख उपलब्ध कराने की कृपा करें।।
akshay jarrur hamara yhi prayas rahega..
Notes kaafi achha hai
Exam time me kafi help ki
Sufiya yh hmare liye khushi ki bt hain
Sir aapke notes Bahut ache Hain mere pas koi books nhi thi …par mene aapke notes pade 🙏.
Jisse exam time me bahut help mili TQ sir 🙏💝
Gajju yh janke hume bhut accha lga apka dhanywad…hume motivated karne ke liye..